Pahalgam terrorist attackPahalgam terrorist attack

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद एक शब्द बार-बार लोगों की जुबां पर आ रहा है और वह है कलमा। जिसे न पढ़ने की वजह से 28 लोगों को मौत की सजा दी गई। बड़े ही बेदर्दी से 28 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और वो भी केवल धर्म के नाम पर धर्म पूछकर। कहते हैं कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता पर पहली बार यहां पर धर्म पूछकर लोगों की हत्या कर दी गई। अब बात करते हैं आखिर कलमा क्या है?

चश्मदीदों के मुताबिक, आतंकियों ने उनसे पूछा- ‘क्या तुम मुस्लिम हो? अगर हां, तो कलमा सुनाओ’। आज हम जानते हैं कि इस्लाम धर्म में कलमा के मायने क्या हैं।

इस्लाम धर्म में कुछ शब्द और वाक्य ऐसे होते हैं जो केवल इबादत के नहीं, बल्कि एक सच्चे मुस्लिम होने की पहचान होते हैं। कलमा या कलिमा इस्लाम में ऐसी ही एक बुनियादी शर्त है। यह एक ऐसी इबादत है जो अल्लाह की बंदगी और हजरत मुहम्मद को अंतिम पैगंबर मानने की घोषणा करती है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, कलमा मुस्लिम समुदाय के हर व्यक्ति को याद होनी चाहिए, क्योंकि यही इस्लाम की बुनियादी पहचान है। कलमा बताता है कि मुस्लिम समुदाय का हर व्यक्ति सिर्फ अल्लाह की इबादत करता है और मुहम्मद पैगंबर की बताई हुई राह पर चलता है। कलमा मुस्लिमों लोगों को उनके धर्म के प्रति समर्पण की याद दिलाता है। इस्लाम में कुल 6 कलमा हैं।

पहला कलमा- कलमा तय्यिब

“ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह”

पहला कलमा को ‘कलमा तय्यिब’ कहा जाता है, जो अल्लाह की बंदगी और पैगंबर हजरत मुहम्मद के अंतिम पैगंबर होने की पुष्टि करता है। इसे पढ़ने से मुस्लिम समुदाय के लोग यह स्वीकार करते हैं कि ‘अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं और मुहम्मद पैगंबर उनके लिए सब कुछ हैं।’

दूसरा कलमा- कलमा शहादा

“अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाह।।। “

इस्लाम में दूसरा कलम ‘कलमा शहादत’ कहलाता है। यह कलमा ईमान की गवाही देता है। यह कलमा अक्सर उस समय पढ़ा जाता है, जब कोई व्यक्ति आत्मचिंतन करता है या इस्लाम कबूल करता है। इस कलमा के जरिए मुस्लिम समुदाय के लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि वह केवल अल्लाह को ही एकमात्र खुदा मानते हैं।

तीसरा कलमा- कलमा तमजीद

“सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि।।। “

इस कलमा के जरिए मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की रहमत के लिए उनका शुक्रगुजार करते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि हर चीज पर सिर्फ अल्लाह का ही हक है।

चौथा कलमा- कलमा तौहिद

“ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दाहू।”

इस्लाम में चौथे कलमा को ‘कलमा तौहीद’ कहा जाता है। यह कलमा अल्लाह की बंदगी को दोहराता है। यह कलमा इस्लामी एकेश्वरवाद के मूल सिद्धांत को भी स्थापित करता है।

पांचवां कलमा- कलमा अस्तगफार

“अस्तगफिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली जम्बिन।।।”

इस्लाम में पांचवां कलमा ‘कलमा अस्तगफार’ कहलाता है। यह कलमा एक मुसलमान द्वारा अपने गुनाहों की माफी मांगने और अल्लाह की तरफ सच्चे दिल से लौटने का जरिया होता है। यह कलमा अल्लाह की रहमत की जरूरत को दर्शाता है। इसे पढ़ते हुए एक मुसलमान यह स्वीकार करता है कि उसने जान-बूझकर या अनजाने में जो भी गलतियां की हैं, उनके लिए वह अल्लाह से तौबा करता है। इसमें यह भी माना गया है कि अल्लाह ही गुनाहों को माफ करने वाला है।

छठवां कलमा- कलमा रद्दे कुफ्र

“अल्लाहुम्मा इन्नी आऊजु बिका।।।”

इस्लाम में छठा कलमा ‘कलमा रद्दे कुफ्र’ के नाम से जाना जाता है। यह कलमा आस्था को मजबूत बनाता है और व्यक्ति को याद दिलाता है कि उसका सिर्फ एक ही रब है- अल्लाह। इसके जरिए व्यक्ति कहता है कि ‘या अल्लाह! मैं तेरी पनाह चाहता हूं। मैं कभी तुझे छोड़कर किसी और को अपना खुदा नहीं मानूंगा। अगर मुझसे ऐसा कोई गुनाह अनजाने में हो गया है, तो मुझे माफ कर दे।’

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